चीन रोड बनाते रह गया, हम रेल और जहाज से पहुंचेंगे यूरोप, G20 के बीच बड़ा ऐलान

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G20 समिट, नई दिल्ली : नई दिल्ली में जी-20 समिट भारत के लिए ऐतिहासिक हो गया है| इस समिट के जरिए भारत ने रूस से अपने पुराने रिश्ते बनाकर रखे तो पड़ोसी देश चीन को कूटनीतिक तौर पर आइना दिखाने में भी कसर नहीं छोड़ी| चीन BRI प्रोजेक्ट के जरिए सड़क बनाते रह गया और भारत ने रेल और जहाज से यूरोप तक पहुंचने का खाका खींच दिया है| शनिवार को शिखर सम्मेलन के पहले दिन भारत-मिडिल ईस्ट-यूरोप इकोनॉमिक कॉरिडोर (IMEC) का ऐलान कर दिया गया है| यह कॉरिडोर कई मायने में अहम माना जा रहा है| इस गलियारे में कई देशों को शामिल किया गया है| यह प्रोजेक्ट पार्टनरशिप फॉर ग्लोबल इंफ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट नाम की पहल का हिस्सा है|

शनिवार को नई दिल्ली में भारत, अमेरिका, सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात, फ्रांस, जर्मनी, इटली और यूरोपीय संघ के नेताओं ने संयुक्त रूप से एक समझौता ज्ञापन (MoU) पर साइन किए और इस मेगा इंफ्रास्ट्रक्चर डील की घोषणा की| जानकारों का कहना है कि यह कॉरिडोर सीधे तौर पर चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) को चुनौती देगा| इसके साथ ही आर्थिक गलियारे की मदद से एशिया, यूरोप और अफ्रीका को जोड़ा जाएगा और व्यापार और इन्फ्रास्ट्रक्चर नेटवर्क को स्थापित किया जाएगा| इस कॉरिडोर की मदद से अतिरिक्त एशियाई देशों को आकर्षित करने की कोशिश रहेगी| इससे क्षेत्र में मैन्यूफैक्चरिंग, फूड सिक्योरिटी और सप्लाई चेन को बढ़ावा मिलेगा |

व्हाइट हाउस की तरफ से भारत-मिडिल ईस्ट-यूरोप इकोनॉमिक कॉरिडोर को लेकर एक फैक्ट लेटर में जानकारी दी गई| इसमें बताया कि कॉरिडोर के जरिए यूरोप, मिडिल ईस्ट और एशिया के बीच रेलवे और समुद्री नेटवर्क स्थापित करना शामिल है| इस महत्वाकांक्षी पहल का उद्देश्य कमर्शियल हब को कनेक्ट करना, क्लीन एनर्जी का विकास और एक्सपोर्ट का सपोर्ट करना, समुद्र के नीचे केबल बिछाना, एनर्जी ग्रिड और दूरसंचार लाइनों का विस्तार करना, क्लीन एनर्जी टेक्नोलॉजी को बढ़ावा देना और और कम्युनिटी के लिए इंटरनेट रीच बढ़ाना, स्थिरता और सुरक्षा सुनिश्चित करना है|

दो अलग-अलग गलियारे बनाए जाएंगे

एमओयू के अनुसार, IMEC में दो अलग-अलग गलियारे शामिल होंगे| पूर्वी गलियारा भारत को अरब की खाड़ी से जोड़ेगा और उत्तरी गलियारा अरब की खाड़ी को यूरोप से जोड़ेगा| इसमें एक रेलवे नेटवर्क की सुविधा होगी जो मौजूदा समुद्री और सड़क परिवहन मार्गों के रूप में विश्वसनीय और लागत प्रभावी क्रॉस बॉर्डर शिप टू रेल ट्रांजिट सुविधा देने के लिए डिजाइन किया गया है| मुख्य रूप से मिडिल ईस्ट से होकर गुजरने वाले इस रेलवे मार्ग में बिजली के केबल और क्लीन हाइड्रोजन पाइपलाइन बिछाने की योजनाएं शामिल हैं|

अगले 60 दिन में तैयार होगी कार्य योजना

व्हाइट हाउस की रिपोर्ट में कहा गया है कि रेल सौदा भारत से यूएई, सऊदी अरब, जॉर्डन और इजराइल के माध्यम से यूरोप तक शिपिंग और रेल लाइनों को जोड़ेगा| अब प्रोजेक्ट में शामिल देश अगले 60 दिन में कॉरिडोर को लेकर एक कार्य योजना तैयार करेंगे| इसमें ट्रांजिट रूट्स, कोऑर्डिनेशन बॉडी और टेक्निकल पहलुओं पर ज्यादा जानकारी के लिए चर्चा की जाएगी| भारत सरकार के सूत्रों के मुताबिक, इसमें शामिल सभी देशों की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान करते हुए परामर्शात्मक, पारदर्शी और भागीदारीपूर्ण कनेक्टिविटी पहल की महत्व पर जोर दिया गया है|

मोदी बोले- पूरी दुनिया की कनेक्टिविटी मिलेगी

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसे ‘मानवीय प्रयास और महाद्वीपों में एकता का एक प्रमाण’ बताया है| उन्होंने कहा, राष्ट्रपति बाइडेन, मोहम्मद बिन सलमान, शेख मोहम्मद बिन जायद, मैक्रो समेत सभी देशों के प्रमुखों को इस इनिशिएटिव के लिए बहुत बधाई देता हूं| मजबूत कनेक्टिविटी और इन्फ्रस्ट्रक्चर मानव सभ्यता के विकास का मूल आधार है| आने वाले समय में भारत पश्चिम एशिया और यूरोप के बीच यह आर्थिक एकीकरण का प्रभावी माध्यम बनेगा| यह पूरी दुनिया की कनेक्टिविटी और सतत विकास को नई दिशा देगा| जबकि अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने इसे ‘वाकई में एक बड़ी उपलब्धि’ माना| बाइडेन ने कहा, दुनिया इतिहास के एक मोड़ पर खड़ी है, एक ऐसा पॉइंट, जहां हम आज जो निर्णय लेते हैं वह हमारे भविष्य की दिशा को प्रभावित करने वाले हैं| नए भारत-मिडिल ईस्ट-यूरोप आर्थिक गलियारे में इजराइल और जॉर्डन भी शामिल हैं|

भारत टू यूरोप इकोनॉमिक कॉरिडोर से बढ़ेगी चीन की टेंशन

बता दें कि चीन का BRI प्रोजेक्ट के 10 साल पूरे हो गए हैं| 2013 में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने इस व्यापार मार्ग को फिर से बनाने के लिए बेल्ट एंड रोड परियोजना की शुरूआत की थी| चीन का ये वैश्विक निवेश प्रोजेक्ट शुरू होने के एक दशक के भीतर अफ्रीका, लातिन अमेरिका, ओशियानिया तक फैल चुका है| कई लोग इसे चीन के लिए विकासशील देशों पर प्रभाव डालने के एक टूल के रूप में देखते हैं, जिसके कारण जरूरतमंद देश अक्सर ऋण जाल में फंस जाते हैं|