सुप्रीम कोर्ट: प्रदूषण नियंत्रण उपायों के अनुपालन के लिए टास्क फोर्स के गठन को मंजूरी, फ्लाइंग स्क्वॉड की संख्या भी बढ़ाई

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पीठ ने कहा, ‘वर्चुअल सुनवाई के बाद, कोई नियंत्रण नहीं है। कौन क्या रिपोर्ट कर रहा है, आप नहीं जानते।’ शीर्ष अदालत ने बृहस्पतिवार को दिल्ली सरकार से कहा था, ‘आपने कर्मचारियों के लिए वर्क फ्रॉम होम लागू किया है। माता-पिता घर से काम करते हैं और बच्चों को स्कूल जाना पड़ता है। यह क्या है?’

सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग द्वारा दिल्ली-एनसीआर में वायु प्रदूषण पर अंकुश लगाने के लिए प्रवर्तन कार्य बल(टास्क फोर्स) और फ्लाइंग स्क्वॉड के गठन के निर्णय को मंजूरी दे दी। आयोग ने वायु प्रदूषण पर अंकुश लगाने के अपने आदेशों का अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए टास्क फोर्स का गठन किया है। चीफ जस्टिस एनवी रमण, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड और जस्टिस सूर्य कांत की पीठ ने केंद और आयोग की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से अदालत के निर्देशों को लागू करने को कहा।

शीर्ष अदालत ने आयोग की इस दलील पर गौर किया कि पांच सदस्यीय टास्क फोर्स का गठन किया गया है और 24 घंटे में फ्लाइंग स्क्वॉड की संख्या 17 से बढ़ाकर 40 कर दी जाएगी। थर्मल पावर प्लांट के सीमित संचालन सहित आयोग द्वारा घोषित उपायों को देखने के बाद शीर्ष अदालत ने केंद्र सरकार से उन संयंत्रों को बाद में राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र से स्थानांतरित करने पर विचार करने के लिए कहा।

उत्तर प्रदेश की ओर से पेश वकील वरिष्ठ वकील रंजीत कुमार ने उद्योगों को दिन में आठ घंटे चलाने की अनुमति देने के नए निर्देशों पर आपत्ति जताई। कुमार ने कहा कि शनिवार और रविवार को उद्योगों के संचालन पर पूरी तरह से रोक लगाई गई है। उन्होंने कहा कि इससे चीनी मिलों पर असर पड़ेगा। उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश में पहले से ही हवा चल रही थी और दिल्ली की हवा पाकिस्तान से आ रही है।

इस पर चीफ जस्टिस ने हल्के अंदाज में कहा, ‘आप चाहते हैं कि हम पाकिस्तान के उद्योगों पर पाबंदी लगा दें।’ शीर्ष अदालत ने उत्तर प्रदेश सरकार को अपनी प्रार्थना के साथ आयोग के समक्ष जाने के लिए कहा है। सुनवाई की शुरुआत में पीठ ने दिल्ली में स्कूलों को बंद करने के लिए अदालत को ‘खलनायक’ के रूप में पेश करने के लिए मीडिया रिपोर्टों पर आपत्ति जताई। शीर्ष अदालत ने कहा कि उसने दिल्ली सरकार को कभी भी स्कूल बंद करने के लिए नहीं कहा था बल्कि केवल स्कूलों को फिर से खोलने पर अपने रुख में बदलाव के पीछे के कारण पूछे थे।

पीठ ने कहा, ‘हमें नहीं पता कि यह जानबूझकर किया गया है या नहीं। मीडिया के कुछ वर्गों ने यह दर्शाने की कोशिश की कि हम खलनायक हैं।’ दिल्ली सरकार की ओर से वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने भी शिकायत की कि एक अखबार ने प्रकाशित किया है कि अदालत प्रशासन को अपने हाथों में लेना चाहती है।

इस पर पीठ ने कहा कि उसने कभी भी ऐसी अभिव्यक्ति का इस्तेमाल नहीं किया। सिंघवी ने कहा कि हम भी इससे सहमत हैं। जिस पर पीठ ने उनसे कहा, ‘आपके पास स्पष्टीकरण और निंदा करने का अधिकार और स्वतंत्रता है। हम ऐसा नहीं कर सकते। हमने कब कहा कहा कि हम प्रशासन को संभालने में रुचि रखते हैं।’

सिंघवी ने जवाब दिया कि अदालत की रिपोर्टिंग राजनीतिक रिपोर्टिंग से अलग है और कुछ जिम्मेदारी होनी चाहिए। पीठ ने कहा, ‘वर्चुअल सुनवाई के बाद, कोई नियंत्रण नहीं है। कौन क्या रिपोर्ट कर रहा है, आप नहीं जानते।’ शीर्ष अदालत ने बृहस्पतिवार को दिल्ली सरकार से कहा था, ‘आपने कर्मचारियों के लिए वर्क फ्रॉम होम लागू किया है। माता-पिता घर से काम करते हैं और बच्चों को स्कूल जाना पड़ता है। यह क्या है?’

सुनवाई के दौरान सिंघवी ने कहा था कि दिल्ली में स्कूल 17 महीने से बंद थे और अभिभावकों की सहमति के बाद ही 15 से 16 दिनों के लिए स्कूल खोले गए थे। साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली सरकार के उस आवेदन को स्वीकार कर लिया जिसमें शहर के अस्पतालों से संबंधित निर्माण कार्यों को आगे बढ़ाने की अनुमति मांगी गई थी। आवेदन में शालीमार बाग, किराड़ी, सुल्तानपुरी, रघुबीर नगर, सरिता विहार, जीटीबी अस्पताल और चाचा नेहरू अस्पताल में सात नए कोविड अस्पतालों के निर्माण गतिविधियों की अनुमति मांगी गई थी।