15 August 2023: पिछले 76 सालों में भारत ने आर्थिक स्वतंत्रता को अपनाया और निर्धारित लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए पंचवर्षीय योजनाओं को तैयार करने के साथ-साथ आर्थिक आत्मनिर्भरता की दिशा में काम किया। परिणामस्वरुप 1947 में भारत की जो जीडीपी 2.7 लाख करोड़ रुपये थी वह 2023 में बढ़कर लगभग 272.41 लाख करोड़ रुपये हो गई।
इस वर्ष हम 77वां स्वतंत्रता दिवस मना रहे हैं। 15 अगस्त 1947 की तुलना में आज का भारत कई मायनों में बहुत हद तक बदल चुका है और कई मापदंडों पर इसका बदलना बाकी है। देश की आजादी के साथ ही देश की अर्थव्यवस्था के पुनर्निर्माण की भी शुरूआत हुई। बीते 76 वर्षों में, भारतीय लोकतंत्र ने कई मोड़ लेते हुए एक लंबा सफर तय किया है। बैंक ऑफ अमेरिका के अनुसार भारतीय अर्थव्यवस्था के 2031 तक तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की उम्मीद है। दुनिया के सामने भारत का कद बढ़ा है और हमें एक ‘महाशक्ति’ के रूप में देखा जा रहा है। इस सबकी शुरुआत 15 अगस्त 1947 को भारत की आजादी के साथ हुई।
ब्रिटिश क्राउन का सबसे चमकदार गहना दुनिया सबसे गरीब देश बना
भारत की स्वतंत्रता इसके आर्थिक इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ था। ब्रिटेन की ओर से किए गए लगातार औद्योगिकीकरण के परिणामस्वरूप देश निराशाजनक रूप से गरीब हो गया। जब देश आजाद हुआ देश में साक्षरता दर महज 12 फीसदी थी। घोर गरीबी और तीखे सामाजिक मतभेदों ने एक राष्ट्र के रूप में भारत के अस्तित्व पर ही सवालिया निशान लगा दिया था। कैम्ब्रिज के इतिहासकार एंगस मेडिसन के रिसर्च से पता चलता है कि विश्व आय में भारत का हिस्सा साल 1700 में 22.6% जो कि पूरे यूरोप की हिस्सेदारी 23.3% के लगभग बराबर था से घटकर 1952 में 3.8% पर पहुंच गया। पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने एक बार कहा था, “ब्रिटिश क्राउन में सबसे चमकदार गहना 20 वीं शताब्दी की शुरुआत में प्रति व्यक्ति आय के मामले में दुनिया का सबसे गरीब देश था।”
आजादी के बाद एक मिश्रित अर्थव्यवस्था का प्रस्ताव रखा गया
देश की आजादी के बाद प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के विकास मॉडल ने एक सर्वव्यापी उद्यमी और निजी व्यवसायों के फाइनेंसर के रूप में राज्य की प्रमुख भूमिका की परिकल्पना की। 1948 के औद्योगिक नीति संकल्प ने एक मिश्रित अर्थव्यवस्था का प्रस्ताव रखा। इससे पहले, जेआरडी टाटा और जीडी बिड़ला सहित आठ प्रभावशाली उद्योगपतियों की ओर से प्रस्तावित बॉम्बे प्लान में स्वदेशी उद्योगों की रक्षा के लिए राज्य के हस्तक्षेप और नियमों के साथ एक पर्याप्त सार्वजनिक क्षेत्र की परिकल्पना की गई थी। राजनीतिक नेतृत्व का मानना था कि चूंकि बाजार आधारित अर्थव्यवस्था में नियोजन संभव नहीं था, इसलिए राज्य और सार्वजनिक क्षेत्र अनिवार्य रूप से आर्थिक प्रगति में अग्रणी भूमिका निभाएंगे।
26 नवंबर 1947 को देश का पहला केंद्रीय बजट पेश हुआ
पिछले 76 सालों में भारत ने आर्थिक स्वतंत्रता को अपनाया और निर्धारित लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए पंचवर्षीय योजनाओं को तैयार करने के साथ-साथ आर्थिक आत्मनिर्भरता की दिशा में काम किया। एक वकील, अर्थशास्त्री और राजनीतिज्ञ, जिन्होंने स्वतंत्र भारत के पहले वित्त मंत्री के रूप में कार्य किया, आरके षणमुखम चेट्टी ने 26 नवंबर 1947 को संसद में देश का पहला केंद्रीय बजट पेश किया। वह 1944 में ब्रेटन वुड्स में विश्व मुद्रा सम्मेलन में भारत के प्रतिनिधि भी थे, जो द्वितीय विश्व युद्ध के अंत के दौरान अर्थशास्त्रियों का जुटान था। इस दौरान एक वैश्विक वित्तीय संरचना की स्थापना की जो आज तक दुनिया को नियंत्रित करती है।
76 साल में जीडीपी 2.7 लाख करोड़ से 272.41 लाख करोड़ हुई
1947 में जब भारत स्वतंत्र हुआ था तब इसकी जीडीपी या कुल आय 2.7 लाख करोड़ रुपये और जनसंख्या 34 करोड़ थी, वहीं आज, 2023 में, देश की जीडीपी वर्तमान मूल्यों पर करीब लगभग 272.41 लाख करोड़ रुपये हो गई है। इस दौरान देश की आबादी भी 1.4 अरब से अधिक हो गई है। भारत की साक्षरता दर 1947 में लगभग 12 प्रतिशत थी आज 75 प्रतिशत पर पहुंच गई है।
हरित क्रांति ने हमें खाद्यान्न के मामले में आत्मनिर्भर बनाया
आजादी के समय खाद्यान्न की कमी का सामना करने वाला भारत अब आत्मनिर्भर भारत बन दुनियाभर के देशों में खाद्यान्न निर्यात कर रहा है। हरित क्रांति के परिणामस्वरूप रिकॉर्ड अनाज उत्पादन हुआ। भारत अब दालों का सबसे बड़ा उत्पादक और उपभोक्ता राष्ट्र बन चुका है। चीनी का यह दूसरा और कपास का तीसरा सबसे बड़ा उत्पादक। 1970 में, श्वेत क्रांति (ऑपरेशन फ्लड) ने देश को दुनिया के सबसे बड़े दूध उत्पादक देश में बदल दिया।
भारत में दुनिया का सबसे बड़ा रेल नेटवर्क, सड़क नेटवर्क में भी हम अव्वल
सड़क और राजमार्ग निर्माण, हवाई अड्डों और बंदरगाहों का विस्तार देशभर में गतिशीलता बढ़ाने के लिए किया गया है। भारतीय रेलवे अब दुनिया के सबसे बड़े रेलवे नेटवर्कों में से एक है जिसमें 1,21,520 किमी ट्रैक और 7,305 स्टेशन शामिल हैं। भाग्य की रेखाओं की तरह सड़कें तरक्की का रास्ता होती हैं। 2001 में वाजपेयी सरकार ने स्वर्णिम चतुर्भुज योजना का शुभारंभ किया, जो भारत में दिल्ली, मुंबई, चेन्नई और कोलकाता के चार प्रमुख शहरों को जोड़ने वाली सबसे बड़ी राजमार्ग परियोजना है। देश में पहली बार प्रतिदिन 37 किमी नेशनल हाईवे 6 से 12 लेन के बनाए जा रहे। 1947 में देश के राष्ट्रीय राजमार्गों की कुल लंबाई 24,000 किमी थी जो अब 1,40,115 किमी हो गई है। आज भारतीय सड़क नेटवर्क दुनिया में सबसे बड़ा बन गया है।
भारत एशिया का तीसरा सबसे बड़ा बिजली उत्पादक देश बना
चूंकि भारत को अपने विकास इंजन को ईंधन देने के लिए बिजली की आवश्यकता है, इसने बहु-आयामी दृष्टिकोण के माध्यम से ऊर्जा उपलब्धता में महत्वपूर्ण सुधार किया है। आजादी के सात दशकों के बाद भारत एशिया का तीसरा सबसे बड़ा बिजली उत्पादक देश बन गया। इसकी बिजली उत्पादन क्षमता 1947 में 1,362 मेगावाट से बढ़कर 2022 में 3,95,600 मेगावाट हो गई। ग्रामीण विद्युतीकरण के संदर्भ में भारत सरकार 1950 में 3,061 की तुलना में 28 अप्रैल, 2018 तक सभी 5,97,376 गांवों को रोशन करने में सफल रही।
आईटी शक्ति के रूप में उभरा भारत
अस्सी के दशक के मध्य में बड़े पैमाने पर कम्प्यूटरीकरण का आगमन, स्वतंत्रता के बाद के भारत के लिए महत्वपूर्ण सकारात्मक विकासों में से एक है, जिसने अंततः भारत को एक विशाल आईटी शक्ति के रूप में माना। देश का भविष्य ‘डिजिटल’ है। डिजिटल लेनदेन का उदय और छोटे व्यापारियों में क्यूआर कोड की बढ़ती लोकप्रियता सुर्खियों में है, मंदिरों में क्यूआर कोड से डिजिटल दान हो रहा।
वर्ष 1991 में देश में लाइसेंसिंग प्रणाली को समाप्त किया गया
वर्ष 1991 में अर्थव्यवस्था का वैश्वीकरण करके औद्योगिक लाइसेंसिंग प्रणाली को समाप्त कर दिया गया और अर्थव्यवस्था को निजी क्षेत्र की अधिक भागीदारी के साथ-साथ विदेशी निवेश के लिए खोल दिया। 1991 के सुधारों के कारण वैश्विक जीडीपी में भारत की रैंकिंग तेजी से बढ़ी। किसी भी अर्थव्यवस्था का उत्थान और पतन काफी हद तक उसके वित्तीय क्षेत्र के स्वास्थ्य पर निर्भर करता है। आज़ादी के 75 सालों में बैंकिंग की भूमिका हमेशा महत्वपूर्ण रही है और यह कई पड़ावों से होते हुए आगे बढ़ रही। 1969 में राष्ट्रीयकरण ने बैंकिंग को ‘क्लास बैंकिंग’ से ‘मास बैंकिंग’ (सोशल बैंकिंग) में स्थानांतरित कर दिया।
बैंकों की शाखाएं पांच हजार से बढ़कर 1.40 लाख हुईं
1947 में जहां 664 निजी बैंकों की लगभग 5000 शाखाएं थीं वहीं पिछले वर्ष तक के आंकड़ों के अनुसार फिलहाल देश में 12 सरकारी बैंकों, 22 निजी क्षेत्र के बैंकों, 43 क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों और 46 विदेशी बैंकों की लगभग 1 लाख 40 हजार शाखाएं कार्यरत हैं। भारत ने एक डिजिटल मुद्रा यानी ईरूपी की भी शुरुआत कर दी है। एचडीएफसी बैंक अपनी मूल कंपनी हाउसिंग डेवलपमेंट फाइनेंस कॉरपोरेशन (एचडीएफसी) के साथ विलय के बाद दुनिया के शीर्ष 10 सबसे मूल्यवान बैंकों में शामिल होने वाला भारत का पहला बैंक बन गया है।
दवाओं के निर्यातक बने, सेमीकंडक्टर के निर्माण की प्रक्रिया शुरू
फार्मास्यूटिकल्स में भारत अब एक प्रमुख उत्पादक है और नई दवाओं के विकास के लिए नित नए अनुसंधान कर रहा है। भारत दवाओं का निर्यात भी कर रहा है। इंजीनियरिंग और इलेक्ट्रिकल मशीनरी में देश नए वैश्विक बेंचमार्क छू रहा। 60 के दशक में, सेवा क्षेत्र में कामकाजी आबादी का केवल 4% कार्यरत था जो अभी 30% से अधिक लोगों को रोजगार दे रहा। इस समय सेवा क्षेत्र का जीडीपी में 50% से अधिक का योगदान है और भविष्य में आंकड़े बढ़ने की उम्मीद है। मेक इन इंडिया, स्किल इंडिया और गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स देश की अर्थव्यवस्था को लगातार मजबूत बना रहे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई में भारत में जल्द ही सेमीकंडक्टर का निर्माण भी शुरू होने वाला है। कई कंपनियां इस दिशा में काम शुरू कर चुकी हैं।
दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था बना भारत
वर्तमान सरकार ने पिछले कुछ वर्षों में देश में उद्यमिता की संस्कृति को बढावा देने की कोशिश की है। देश अब बेसिक इंफ्रास्ट्रक्चर से ‘मल्टी मॉडल कनेक्टिविटी इंफ्रास्ट्रक्चर’ की और बढ़ चुका है। भारत, जो अब विश्व स्तर पर एक प्रभावशाली देश बन गया है, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) की एक रिपोर्ट के अनुसार, वित्त वर्ष 2022 के लिए अनुमानित सकल घरेलू उत्पाद (GDP) 8.2% की वृद्धि के साथ भारत दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था बन गया है। चालू वित्त वर्ष 2023-24 में भी भारत की जीडीपी लगभग 6.5% रहने का अनुमान है। भारत एक उज्जवल निवेश स्थल के लिहाज से पूरी दुनिया को आकर्षित कर रहा है।
चुनौतियां अब भी शेष उन्हें दूर कर ही बन सकते हैं विकसित
इसमें कोई संदेह नहीं कि देश ने इन 75 वर्षों में एक लंबा रास्ता तय किया है और जो एक मील का पत्थर है पर हम अभी भी एक ‘विकासशील देश है, देश को अभी भी एक लंबा रास्ता तय करना है, और ये भी सही है कि आने वाले समय में देश के सामने कई चुनौतियां भी होंगी। सरकार ने वर्ष 2047 तक देश को विकसित राष्ट्रों की कतार में शामिल करने का लक्ष्य रखा है। भारत में रेलवे वर्तमान में सबसे बड़ा नियोक्ता है हालांकि ट्रेनों में आरक्षित सीट पाने के लिए अब भी लोगों को जद्दोजहद करना पड़ रहा है। देश के सामने रोजगार सृजन अब भी एक गंभीर चुनौती है। भारत ने स्वतंत्रता के बाद एक अरब अधिक उपभोक्ता जुड़े पर क्रय शक्ति कुछ लोगों तक ही सीमित है।
विकसित राष्ट्र बनने के लिए आर्थिक असमानता से निपटना जरूरी
देश में आर्थिक असमानता लगातार बढ़ रही है। आज हम कृषि के मामले में आत्मनिर्भर हैं, लेकिन किसानों की स्थिति बहुत अच्छी नहीं है। उन पर कर्ज बढ़ता जा रहा है और यह 620 अरब के पार पहुंच गया है। इन चुनौतियों से निपटे बिना देश को विकसित राष्ट्र बनाना संभव नहीं है। भारत इस साल होने वाले जी-20 की अध्यक्षता कर रहा है। इस दौरान हम “वसुधैव कुटुम्बकम” की भावना के साथ तीसरी दुनिया की आर्थिक समृद्धि के लिए आवाज उठा रहे हैं। जी-20 अब तक हुई बैठकों में हमने अपना पक्ष मजबूती से रखा है। उम्मीद है चुनौतियों से निपटते हुए हम देश को आर्थिक रूप से समृद्ध बनाने का लक्ष्य हासिल करेंगे।