” मामा ” ने दिखाया ” गुरु-चेले” को आइना, इंदौर-उज्जैन बना जरिया
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” शिव ” बने ” शंकर ” के तारणहार.!!
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पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह के कारण हुआ लालवानी का टिकट रिपीट
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टिकट तो शिवराज की मर्जी का आ गया लेकिन पार्टी में नाम घोषित होने के बाद से सन्नाटा
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शीर्ष नेतृत्व 2 मार्च को सभी 29 सीटों की कर रहा था घोषणा, महिला नेताओं के नाम से प्लानिंग से रोक ली 5 सीट
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साईं का टिकट कटने वाले बयान ने पलट दी बाज़ी, वीडियो के साथ दिल्ली दरबार मे दस्तक
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नितिनमोहन शर्मा
..आखिरकार ” शिव ” ही संकट मोचक बने और ” शंकर ” के तारणहार भी। अन्यथा ” शंकर ” लगभग ” कंकर” बन ही चुके थे। ” कैलाश ” ने तो उन्हें वक्त से पहले ही ” वनवास” भेज दिया लेकिन ” शिव ” ने ” शंकर ” का हाथ थाम उन्हें “वानप्रस्थ” जाने से बचा लिया। अब “शिव” की शरण मे ” शंकर ” गदगद हैं और शेष सब ” कुपित” हैं। बावजूद इसके शंकर बेफिक्र हैं। उन्हें पता है कि देर-सबेर “कुपित” नेताओ को ” कोपभवन” से बाहर आना ही होगा और काम करना ही होगा। अन्यथा ” दिल्ली दरबार ” की ” भृकुटी ” तनते देर नही लगेगी।
मामला है इंदौर के सांसद शंकर लालवानी के टिकट के रिपीट होने का। अपने ” सुस्त” कार्यकाल के चलते वे इस बार किसी को इंदौर के राजनीतिक परिदृश्य में नजर नही आ रहे थे। प्रदेश के राजनीतिक समीकरण भी बदल गए थे। बदले प्रदेश के सियासी समीकरणों ने शंकर की राह कठिन कर दी थी। लिहाजा वे मोन हो गए थे। स्वयम भी घोर असमंजस में थे कि शायद ही इस बार किस्मत साथ दे। लेकिन उनकी किस्मत जोरदार थी जो उनके पुराने “खैरख्वाह” पुनः ताकत में आ गए। वे भी एन चुनाव के मौके पर।
दिल्ली से बिगड़े रिश्ते, मातृसंस्था के एक शिर्ष पदाधिकारी की मदद से फिर सुधर गए। सुधरे भी ऐसे कि फिर टिकट के मामले में न “मोहन” दिल्ली को मोह पाए न कोई आस ” कैलाश ” के आसपास फटक पाई। कोशिशें बहुतेरी हुई लेकिन अंजाम तक नही पहुँची। ” शिव” ने गुपचुप ऐसा मैदान पकड़ा कि ” नया निजाम” भी भौचक्का रह गया। शायद इसी कारण फूलों के गुलदस्ते “खानाबदोश मामा के घर” पहुँचने लगे। स्वयम ” सरकार” भी उसमे से एक थी। ” मामा” के “गृह नक्षत्र” बदलने का सबसे ज्यादा फायदा इंदौर और उज्जैन को मिला। अन्यथा यहां के मोजूदा सांसदों की बिदाई लगभग तय हो गई थी।
” मामा ” ने मालवा में ” गुरु-चेले” को एक साथ आईना दिखा दिया और ये अहसास भी करा दिया कि ” टाइगर अभी जिंदा हैं”। “शंकर” ने भी ” साधना” में कोई कमी नही रखी और ” शिव दरबार” का शुभाशीष बनाये रखा। बस फिर क्या था, ” सपनो का शहर” जिसे पसन्द था, उसी का फिर से हो गया। ये बात अलग है कि इस शहर को सिर्फ सपने ही मिले। नए निजाम से उम्मीद जागी थी कि वो बिन सपना दिखाए शहर के हर सपने को साकार करें। लेकिन “पुरानी सरकार” ने ” नई सरकार” को पीट दिया और फिर से ” मेरे सपनों का शहर” वाला जुमला कायम कर दिया।
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इतना सन्नाटा क्यो हैं पसरा?
लोकसभा उम्मीदवार की घोषणा के पहले जो गर्मी भाजपा में नजर आ रही थी वो टिकट की घोषणा होने के बाद से रफूचक्कर हो गई। न कोई जश्न, न उत्सव। न गाजे बाजे और रेलिया। जबकि उम्मीदवार का ख़ुलासा हो गया। बावजूद इसके पार्टी गलियारों में सन्नाटा पसर गया। सड़कों पर भी ये सूनापन नजर आ रहा है। सोशल मीडिया पर भी सूखा पड़ा हुआ है। पार्टी नेताओं की पोस्ट का अकाल सा छाया हुआ हैं। माना कि इंदौर से भाजपा स्वयम को जीता हुआ ही मानकर ही चल रही है लेकिन इस शहर ने भाजपा की ऐसी ख़ामोशी कभी देखी ही नही। वो भी लोकसभा जैसे बड़े चुनाव के मुहाने पर, उम्मीदवार आने के बाद। जबकि उम्मीदवारी की घोषणा उस वक्त हुई, जब मुख्यमंत्री की मौजूदगी में समूची भाजपा एक ही मंच पर मंचासीन थी।
चलते कार्यक्रम में उम्मीदवार का खुलासा हुआ लेकीन रस्म अदायगी की खुशियां ही मौके पर नजर आई। दूसरे दिन से तो ये रस्म अदायगी भी पूरी तरह नदारद हो गई। 9 विधायक, 65 पार्षद, जम्बो नगर इकाई, निगम मण्डल आयोग के मुखिया आदि सब तरफ गहरी खामोशी छाई हुई हैं। 48 घण्टे से ज्यादा होने को आये, सिर्फ उम्मीदवार के खेमे से जुड़े लोगो के अलावा सड़क पर कोई नजर नही आया। जनता चोक यानी राजबाड़ा भी जश्न का इंतजार करता ही रह गया। दीनदयाल भवन के बाहर भी आतिशबाजी नही हुई। भाजपा में ये सन्नाटा शुभ संकेत नही माना जा रहा। चुनावी हार जीत की बात अलग है लेकिन जिस तरह की शहर भाजपा ने प्रतिक्रिया दी है, उसे दिल्ली को जरूर सुनना चाहिए।
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मुख्यमंत्री ने मिसाल कायम की..!!
इंदौर उज्जैन के टिकट को लेकर भाजपा में गूंज रही आवाजो को अगर सही माने तो इन दोनों शहरों में पूर्व सीएम की चली। उन्होंने इन दोनों सीट पर अपने प्रबल समर्थक नेताओ को टिकट दिलाकर सीएम और पुर्व महासचिव को आइना दिखा दिया। लेकिन सूत्र हकीकत कुछ और बता रहें हैं। उनकी माने तो लोकसभा के 29 टिकट वितरण मामले में सीएम डॉ मोहन यादव ने मिसाल कायम की। उन्होंने दिल्ली दरबार को स्पष्ट कर दिया था कि टिकट वितरण आपका सर्वाधिकार है। आप जिसे चाहे उम्मीदवार बनाये, जीताकर लाने का काम हमारा। बताते है कि सीएम ने अपने गृह नगर के लिए भी कोई डिमांड शीर्ष नेतृत्व से नही की थी।
चर्चा बहुत थी कि सीएम उज्जैन से किसी महिला का टिकट चाहते हैं। लेकिन टिकट हुआ सीएम के विरोधी माने जाने वाले मोजूदा सांसद अनिल फिरोजिया का। ऐसे ही इंदौर के मामले में भी कहा जा रहा था कि वे उस नाम के साथ ही जो उनके ” उस्ताद ” का होगा। लेकिन यहां भी पूर्व सीएम कोटे में ही टिकट आया। अब पार्टी गलियारों में ये चर्चा आम है कि सीएम ने टिकट वितरण से दूरी बनाकर दिल्ली दरबार की मुश्किलें कम कर दी। शायद ये ही कारण रहा होगा कि “उस्ताद” इंदौर में ” डिफिट” खा गए। अन्यथा उनके पिटारे में हर तरह के नाम थे लेकिन सीएम का साथ होना भी तो जरूरी है न?