भोपाल गैस त्रासदी मध्य प्रदेश की राजधानी में 3 दिसंबर की आधी रात को हुई थी। हजारों लोगों ने यूनियन कार्बाइड कॉर्पोरेशन के प्लांट से निकली जहरीली हवा की वजह से दम तोड़ दिया था।
जब भी औद्योगिक हादसों की बात आती है तो चर्नोबिल और भोपाल गैस त्रासदी से ही शुरुआत होती है। 37 साल पहले 3 दिसंबर को भारत में भीषणतम औद्योगिक त्रासदी हुई थी, जब 5 लाख से अधिक लोग मिथाइल आइसोसाइनेट गैस के संपर्क में आए थे। इसके साथ-साथ कार्बन मोनोऑक्साइड, हाइड्रोजन साइनाइड जैसे अन्य जहरीले पदार्थ भी थे, जिसने यूनियन कार्बाइड के प्लांट के पास भीषण तबाही मचाई थी।
क्या हुआ था?
2-3 दिसंबर की दरम्यानी आधी रात को अमेरिकी कंपनी यूनियन कार्बाइड कॉर्पोरेशन की भारतीय सहायक कंपनी के कीटनाशक बनाने वाले प्लांट से 40 टन मिथाइल आइसोसाइनेट गैस का रिसाव हुआ था। यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री के प्लांट नंबर सी से यह रिसाव हुआ था। दरअसल, 42 टन मिथाइल आइसोसाइनेट के टैंक नंबर 610 में पानी आ गया था, जिससे लीक हुआ था।
इसका नतीजा यह हुआ कि अत्यंत जहरीली मिथाइल आइसोसाइनेट गैस हवा में घुल गई। जहरीली गैसों का गुबार उठा और उसने पूरे इलाके को अपने घेरे में ले लिया। कई लोग तो नींद में ही चल बसे। मध्य प्रदेश सरकार के अनुमान के मुताबिक 3,787 लोगों की मौत हुई थी। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक मरने वालों की संख्या 16 से 30 हजार है। वहीं, इससे प्रभावितों की संख्या 5 लाख से अधिक है।
लीक के बाद क्या हुआ?
मौतें तो हुई ही, भोपाल की बड़ी आबादी ने खांसी, आंखों और त्वचा में जलन और सांस लेने में दिक्कत होने की शिकायत की। हजारों लोग अंधे हो गए। कई लोगों को छाले पड़ गए। 1984 में भोपाल में ज्यादा अस्पताल भी नहीं थे। सरकार के दो अस्पताल थे, जिसमें शहर की आधी आबादी का इलाज नहीं हो सकता था। इतनी बड़ी संख्या में लोग अचानक अस्पताल पहुंचे तो डॉक्टर भी कारण नहीं समझ सके थे।
क्या लीक का प्रभाव खत्म हो गया?
नहीं। लीक की वजह से कई लोगों पर दूरगामी परिणाम हुए। गैस के संपर्क में आए हजारों लोगों ने शारीरिक और मानसिक रूप से विकलांग बच्चों को जन्म दिया। प्रबावित इलाके में जन्मे बच्चों के हाथ-पैर में विकार दिखाई दिए। कई बच्चों में तो एक से अधिक अंग भी थे। शिशुओं की मौत बढ़कर 300 प्रतिशत हो गई थी। कुछ लोग तो आज भी इस गैस के संपर्क में आने की वजह से विकारों से जूझ रहे हैं।